हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों ने इस बार चौंका दिया। कांग्रेस इस बार जीत को लेकर आश्वस्त थी। एग्जिट पोल्स से लेकर सियासी बयानों तक यही संकेत मिल रहे थे कि भाजपा इस बार मुकाबले में कमजोर है। कांग्रेस में यह मंथन भी होने लगा था कि 65 से ज्यादा सीटें आती हैं तो कमान किसे सौंपी जाएगी। भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला, तीनों नेता सीएम पद पर अपनी दावेदारी को लेकर ताल ठोंक रहे थे। युवाओं में बेराजगारी और किसानों-पहलवानों की नाराजगी जैसे मुद्दे को कांग्रेस जोरशोर से उठा रही थी। इस सबके बावजूद भाजपा कांग्रेस की बगल से जीत को निकालकर ले गई। यह कुछ ऐसा ही है, जैसे कुश्ती में ‘बगलडूब’ दांव होता है, जब एक पहलवान सामने वाले पहलवान की बगल और पकड़ से बाहर निकलकर उसे परास्त कर देता है।
1. भाजपा का आंतरिक सर्वेक्षण, इन सीटों पर थी नजर
यहां तक कि भाजपा के आंतरिक सर्वेक्षण में भी 35 से 38 सीटों का अंदाजा लगाया गया था। इसके बाद भाजपा ने ऐसी 18 सीटों पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जहां पर मुकाबला बहुकोणीय था। वहीं, 39 ऐसी सीटों पर भी भाजपा ने जोर लगाया, जहां उसका कांग्रेस से सीधा मुकाबला था। उधर, मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी भी कह चुके थे कि यदि गठबंधन की जरूरत पड़ी तो सारी व्यवस्थाएं हैं।
2. कम मतदान के बाद भी अटकलें हुईं तेज
हरियाणा में 15वीं विधानसभा चुनाव में 67.90 प्रतिशत मतदान हुआ। यह 2019 के विधानसभा चुनाव में 67.92 प्रतिशत के मुकाबले .02 प्रतिशत कम रहा। राज्य के विधानसभा चुनाव के इतिहास में यह चौथा मौका था, जब सबसे कम मतदान हुआ। इसे सत्ता विरोधी लहर से जोड़कर देखा गया क्योंकि 10 साल से भाजपा यहां सत्ता में थी।
3. किसी भी एग्जिट पोल ने भाजपा को नहीं दिया बहुमत
किसी भी एग्जिट पोल में भाजपा को बहुमत मिलने का अनुमान नहीं लगाया था। आठ एग्जिट पोल्स यही बता रहे थे कि कांग्रेस के 10 साल बाद वापसी करने के संकेत हैं।
4. रुझानों में 100 मिनट कांग्रेस रही आगे
मंगलवार सुबह रुझानों में भी 100 मिनट तक कांग्रेस आगे रही, फिर भाजपा इस तरह आगे निकली कि दोपहर 12 बजे तक के रुझानों में कांग्रेस 40 के आंकड़े को पार नहीं कर पाई।